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रेलवे की आधारभूत संरचना में सुधार की जरूरत

aandolan
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भारतीय रेलवे को अत्याधुनिक बनाने के लिए युद्व स्तर पर सरकारों द्वारा प्रयास किया जाता रहा है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है, कि यात्रियों की जान की परवाह अभी तक सरकारों द्वारा नहीं किया जा सका है। पिछले दो दिनों में जिस तरीके से तीन रेलगाडियां पटरी से उतरकर लोगों की जान से खेलने के लिए बेताब दिखी, उससे मालूमात यही होता है, कि रेलमंत्रालय सुविधाओं के नाम पर चाहे जितने ढोल पीट ले ,लेकिन रेलवे आजादी के सात दशक के बाद भी अपनी मूलभूत समस्याओं से न तो निजात पा सका है, और न ही लोगों की जिंदगी को बचाने के लिए कोई आधारभूत संरचना का विकास रेलवे बोर्ड के पास वर्तमान में दिख रहा है। लोग अपनी जिंदगी की बाजी लगाकर यात्राएं करने पर खुद को मजबूर पाते है, और देश को अंधी विकास की नदी के समान बहाने के फलस्वरूप देश के लोगों के सामने लाखों करोड़ों रूपये के खर्च से बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया जा रहा है।
यह वाकया इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि जिस दिन इंदौर-पटना सुपरफास्ट ट्रेन का कानपुर के पास पुखरायां में हादसा होता है, उसी दरमियान तीन दिनी सीविर का आयोजन चल रहा होता है, वह भी रेल की सुविधाओं की बेहतरी और सुरक्षा के नाम पर सूरजकुंड नामक स्थान पर। फिर भी रेलवे की लापरवाही कही जाएं, या कोई अन्य कारण हादसे में रेल के चैदह डिब्बे पटरी से नीचे उतर जाते है। आम निर्दाेष लोगों की जिंदगी दांव पर लग जाती है, सैकड़ों की संख्या में बेकसूर लोगों की जान चली जाती है, और तीन सौ से अधिक घायल हो जाते है, फिर भी रेलवे जागने में देर करता है, और जांच करने के आदेश भर से इस भयावह घटना से छुट्टी की फिराक में नजर आता है, उन निर्दोषों की कीमत केवल पैसे से नहीं आंकी जा सकती है। रेलवे तंत्र में व्याप्त विसंगतियों पर आधारभूत वार की जरूरत समय की पुकार है, लेकिन बुलेट ट्रेन और रेलवे सुविधाओं में वृद्वि के टैग पर लोगों की जान से कब तक खिलवाड़ किया जाता रहेगा, इसका जवाब वर्तमान परिदृशय में न रेलवे के पास दिख रहा है, न ही सरकार के पास।
रेलवे दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण रेलवे पटरियों के साथ छेडछाड और कर्मचारियों की संख्या में कमी का होना है, उस और न तो रेलवे बोर्ड का ध्यान है, न ही वर्तमान सरकार का। ऐसा नहीं है, कि रेलवे की घटनाएं केवल एनडीए सरकार में हो रही है, ये दुर्घटनाएं यूपीए सरकार में भी हो रही थी, लेकिन जिस अंदाजे बयां में मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरूआत की और रेलवे के कायाकल्प के लिए जापान की मदद से रेलवे की गति बढ़ाने और बुलेट ट्रेन चलाने की बात की, उससे यह बात लाजिमी हो जाती है, कि मोदी सरकार रेलवे की दुर्घटानाओं को कम करने के लिए रेलवे की आधारभूत संरचनाओं पर जोर देंगे। लेकिन ऐसा कोई भी कदम अभी तक नहीं दिख सका। जो कि एक सोचनीय विषय बना हुआ है। लोगों को सुविधाओं और समय की बचत से पहले अपने जीवन की परवाह होती है। सैम पित्रोदा कमेटी ने रेलवे पटरियों के नवीनीकरण और 11 हजार 250 पुलों को आधुनिक करने की बात की, लेकिन उस पर आज तक अमल नहीं हो सका। हंसराज खन्ना की रिपोर्ट को भी आज तक लागू नहीं किया जा सका। देष में 1लाख 21 हजार पुल में से 75 प्रतिषत आजादी के वक्त के है, लेकिन उसके नवीनीकरण पर सरकार का ध्यान नहीं दिख रहा है। हादसे के बाद केवल जांच कमेटियों का गठन और जिंदगियों की कीमत लगाना ही एक फौरी उपाय सरकार और रेलवे के पास दिखता है।
सरकार के द्वारा रेलवे को आम बजट में शामिल कर दिया गया, डायनेमिक किराया सिस्टम लागू किया गया। हाफ टिकट बंद किया गया। जनता ने फिर भी भरोसा बनाये रखा, लेकिन उसकी जिंदगी आज भी यात्रा के नाम पर मौत को गले गलाने के समान साबित हो रही है। अमेरिकी विशैषज्ञों के मुताबिक भारतीय रेलवे दुनिया की व्यस्ततम रेलवे है। पिछले दो दशकों में इसकी माल ढुलाई में लगभग 165 प्रतिषत और यात्रियों की संख्या में लगभग 250 प्रतिषत बढोत्तरी हुई, लेकिन ढांचागत सुविधाओं पर ध्यान नही दिया गया, जिससे लोगों की जिंदगी केवल सांत्वना राशि के रूप में सिमटकर रह गई है। रेलवे प्रशासन और सरकार की नीति और नीयत का पता लगाया जा सकता है, कि रेलवे की 75 प्रतिषत परियोजनाएं जिन पर 15 साल से काम चल रहा है, लेकिन अभी पूर्ण नही हो सका है। मोदी का मिषन बुलेट टेªन और 1700 मील अमान परिवर्तन ब्राड गेज का सपना और 1200 मील रेलवे लाइन का विद्युतीकरण तब तक सही अर्थों मेें साकार रूप नहीं ले सकता है, जब तक लोगों की जान किसी भी कीमत पर सुरक्षित न की जा सकें। मोदी का सपना देष में 2020 तक रेलवे में 130 अरब डाॅलर के निवेष के साथ ढांचागत सुधार का है, जिस पर अमल करने का सही वक्त यही है। रेलवे के क्षेत्र में भारत अभी भी अन्य देषों से बहुत पीछे है, लाईनें चाहे वह 65 हजार से कितनी भी अधिक बिछा लें। उसे पहले अन्य देषों की तरह अपने देष के लोगों की जान को सुरक्षित करने के तरीके विदेषी देषों की तर्ज पर ईजात करने होंगें। आज देष में हजारों ऐसे रेलवे फाटक है, जो खुले है, उसकी बात उठती है, लेकिन काम नहीं होता, जिसके कारण आम लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ती है, सरकार और रेलवे को उस और ध्यान देना होगा, देष का आम नागरिक पहले सुरक्षित यात्रा की कामना करता है, उसे बुलेट टेªन और अन्य सुविधाओं की जरूरत बाद में है, सरकार को उस और कदम उठाने की जरूरत है।
महेश तिवारी
स्वतंत्र टिप्पणीकार

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