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जेलों की सुरक्षा इतनी लचर कैसे?

aandolan
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पहले भोपाल जेल से खूनखार आतंकियों से भागने की बात और पुनः पंजाब की नाभा जेल में शाराती तत्वों का हमला और हत्या, लूट के आरोपों से जूझ रहें आतंकियों को छूडाना प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही को बयां करता है। देश की सुरक्षा और अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वाले इन आतंकियों के साथ देश में इतना नरम रूख दिखाया जाता है, जिससे कि आतंकियों और देश के लिए भयावह स्थिति उत्पन्न करने वाले इन लोगों की ताकतों में आये दिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। कही न कही देश की सुरक्षा व्यवस्था में खामियां देखने को मिल रही है, जिससे चाहे वह पठानकोट के एयरबेस में आतंकियों के घुसकर हमला करने की जुर्रत की, और या जम्मू कष्मीर में सीमा से सटे चैकियों पर जेहाद के नाम पर नापाक इरादों से की जाने वाली आतंकी घटनाएं हो। इससे देष की आम जनता से लेकर देष की कानून व्यवस्था और देष की अस्मिता प्रभावित होती है, लेकिन इन घटनाओं से न तो सरकार सबक लेती हुई दिखाई पड़ती है, और न ही देश की प्रषासनिक व्यवस्था इन हमलों से अपनी सुसुप्त अवस्था को छोड़कर देश में प्रषासनिक व्यवस्था में सुधार की तरफ इशारा करता दिखाई पड़ता है। गलतियों से सबक लेते हुए न सरकार का ध्यान दिखाई पड़ता है, न ही जेल प्रशासन और प्रशासनिक शासन व्यवस्था। जो कि समय की मांग बन जाने के बावजूद प्रशासन में सुधार नहीं दिख रहा है।
जिस आतंकवाद और देश नक्सलवाद, और माओवाद से ग्रसित मालूम होता है, उससे निजात पाने के लिए केवल एकबार सर्जिकल स्ट्राइक हो जाने से समस्या का हल नहीं निकलने वाला है। देश के भीतर ही, कुछ ऐसे तत्व कार्य करते है, जो कि इस देष की सुरक्षा और निजता से खेलने वालों का साथ देते है, उन्हें चिहिन्त करके देश को पहले उनसे निपटने की जरूरत मालूमात होती है। देष के प्रषासनिक तंत्र पर अंगुलियां उठनी इसलिए लाजिमी हो जाती है, क्योकि जिस वक्त भोपाल जेल से सिमी के आठ आतंकवादी भागने की फिराक में थे, उस समय तक हमारी प्रशासन व्यवस्था के कानों तक जूं नहीं रेंगती, फिर उसके बाद प्रशासन व्यवस्था अपनी नींद से उठकर आतंकियों का साफाया करती है, जो कि काबिलेतारीफ है, लेकिन प्रषासनिक तंत्र में किसी न किसी स्तर पर खामियां व्याप्त है, जिससे निजात मिलना देश के सरोकार और सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। देष पिछले लगभग तीस सालों से आतंकवाद की समस्या से ग्रसित है, जिसपर सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद कोई सफल कोशीश नही की जा सकी है।
पंजाब के नाभा जेल पर जिस तरीके से खालिस्तान लिबरेषन फोर्स के आतंकियों ने हमला किया, उससे देष की जेलों और प्रशासनिक व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा करने का मौका लाजिमी हो जाता है, क्योकि जिस जेल को देश की सबसे सुरक्षित जेलों में से एक में स्थान प्राप्त हो उस जेल पर आतंकियों द्वारा हमले को अंजाम देकर अपने छह साथियों को छुड़ा ले जाना देश की प्रशासनिक तंत्र के खोखलेपन का सबूत पेश कर रही है। सबसे बड़ी खामी देश की न्याय व्यवस्था को लेकन उठाया जाना उचित हो जाता है, कि देश की आजादी के साठ वर्षों के बाद भी कैदियों के जुल्म और उनके कारतूतों के काले कारनामें को साबित करके उन्हें अंजाम तक पहुंचाने में सालों-साल लग जाते है। इस न्याय व्यवस्था की नाकामी के कारण देश का गरीब और निचला तबका अपने मुकादमें में समय और लगने वाले अतिरिक्त राशि के कारण दिकक्तों का सामना करता है, और दूसरी और इस तरीके के नापाक इरादे रखने वाले आतंकियों पर देश की अर्थव्यवस्था को चूना लगाकर उन्हें पालने का कार्य जेलों में किया जाता है, और वे देश को नुकसान पहुंचाने का एक भी मौका व्यर्थ नहीं होने देते है। इस तरीके के आतंकवादियों के केसों को जल्द से जल्द निपटाकर देशहित में उनकी सजा का एलान करना चाहिए, जिससे देश की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने में दिकक्तों का सामना न करना पड़े।
दूसरे दिन हरमिंदर सिंह मिन्टू खालिस्तान लिबरेषन फोर्स के सरगना और आतंकी को भले ही पुलिस ने अपने हथे चढ़ाकर अपनी पीठ थपथपाने का मौका ढ़ूढ़ रही हो, लेकिन जिस तरीके से आतंकी पुलिस के वेश में जेल के अंदर घुसकर अपने साथियों को छुड़ाने में कामयाब रहें। इससे यह बात साबित होती है, कि पंजाब में खालिस्तानी आतंक को विदेश शह मिल रही है, जिसे अगर समय रहते काबू में नहीं किया गया, तो यह पंजाब के लिए घातक सिद्व होगा। और सबसे ज्यादा सुरक्षित जेल में अगर इस तरीके की हरकत करने में आतंकी कामयाब हो जायेगें तो देश की अन्य जेलों का क्या होगा। सरकार और प्रशासन को अपनी छवि को सुदृढ करनी होगी, तथा व्यवस्था में सुधार अब जरूरत बन गई है।
महेश तिवारी
स्वतंत्र टिप्पणीकार

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