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जयललिता के दक्षिण का दुर्ग किसका होगा

aandolan
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दक्षिण का दुर्ग किसका होगा
जनमानस पर राज करने वाली जयललिता के इस नष्वर संसार से विदा होने के बाद अब तलिम राजनीति में नया पड़ाव सबके सामने आने वाला है। एक छत्र राज्य करने वाली जयललिता यानी अम्मा तमिलनाड़ू के गरीब और दलित तबके के साथ सबको साधते हुए छ बार मुख्यमंत्री रहीं। जिस हिसाब से तमिलनाड़ू की राजनीति से फिल्मी सितारों का जुड़ाव लगातार रहा, वह भी वहां कि राजनीति का अनूठा मिसाल देष के सामने प्रस्तुत करती है। जयललिता ने फिल्मों से शुरूआत करके क्षेत्रीय राजनीति के साथ-साथ शैने-षैने अपनी धाक राष्ट्रीय राजनीति तक कायम कर ली थी। विधानसभा में हुए उनके शुरूआती महिलाओं पर ज्यादती से निर्भीक होकर उन्होंने एम जी रामाचन्द्रन के स्वर्गवास के बाद जो वर्चस्व तलिमनाड़ू की जनता में बनाया, वह किसी भी मुख्यमंत्री की बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। अपने कार्यकाल के शुरूआती दौर से ही उन्होंने अपने बूते विकास और राजनीतिक कूटनीति पर चलते हुए ऐसा माहौल बनाया, कि तमिलनाड़ू की राजनीति ही क्या उनकी पार्टी में भी उनके बाद कोई बड़ा राजनेता खड़ा नजर नहीं आया। यह स्थिति उसी तथ्य की याद दिलाता है, जब एम जी रामाचन्द्रन के समय कोई भी उनकी पार्टी में उनके समकक्ष कोई भी राजनेता अपनी राजनीतिक बीज को नही उगा पाया था। फिल्मी दुनिया से अपनी जिंदगी की शुरूआत करनी वाली अम्मा के जाने के बाद पार्टी का वर्चस्व कौन संभलेगा, यह बात तो भाविष्य के गर्भ में है, लेकिन तात्कालिक रूप से पन्नीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री पद संभाल लिया है।
जयललिता के मौजूद न होने पर मुख्यमंत्री पद संभालने वाले का राजनीतिक कद उनकी पार्टी में इतना व्यापी नही है, कि निष्चितकालीनं के लिए पार्टी उनको अपना चेहरा बना लें। राजनीति विषेषज्ञों के मुतातिक जिस तरह से जयललिता एम जी रामाचन्द्रन के अंतिम समय में साथ खड़ी थी, उसी तर्ज पर जयललिता के समय शषिकला नटराजन सामने आई है, और शषिकला और जयललिता में आपसी स्नेहपूर्ण भाव भी देखने को मिला, लेकिन कुछ स्थितियों को छोड़कर बात की जाएं तो। अब पार्टी कुछ समय तक शषिकला और पन्नीरसेल्वम की जुगलबंदी से चलती रहेगी, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा और अपने हितों की पूर्ति के कारण पार्टी के अंदर अनबन की स्थिति आज नही तो कल उत्पन्न होने वाली है, ऐसी अटकलें लगाई जा रही है। जो राजनीतिक सिक्के का एक पहलू भी है।
तमिलनाड़ू की राजनीति में पन्नीरसेल्वम की पहुंच भी खासी अच्छी नहीं है। वही जयललिता के जीवन से अलविदा कहने के बाद कायास लगाये जा रहे है, कि शषिकला को राजनीतिक कार्यों को चलाने का जिम्मा सौंपा जा सकता है, लेकिन राजनीति में अगर पार्टी के अंदर दो धड़े हो जाते है, वह वही से उस पार्टी की विनाषलीला चालू हो जाती है। वर्तमान समय में एआईएडीएमके की राजनीति को आगे बढ़ाने का जिम्मा जिन दो चेहरों पर दिख रहा है, उनका वाजूद तमिलनाड़ू की जनता में उतना प्रसिद्ववाला नही है, कि अगर पार्टी में आपसी मतभेद होने की वजह से राज्य की सरकार गिर जाती है, तो कोई भी ऐसा चेहरा पार्टी के भीतर नजर नहीं आ रहा है। तमिलनाड़ू की राजनीति में पिछले 49 वर्षों से एआईएडीएमके और विपक्षी पार्टी राज्य की शासन सत्ता में लगातार काबिज रही, लेकिन वर्तमान समय में दोनों पार्टियों में कोई अन्य नेता मुखिया के अलावा नजर नही आ रहा है। पन्नीरसेल्वम जो कि जयललिता की गैरहाजिरी में मुख्यमंत्री का पद संभालते रहे है, उनका अपना कोई भी व्यापक असर राज्य की राजनीति में नही है, और साथ ही पार्टी के अंदर भी उनके प्रति एकमत विधायक नही हो सके है।
बीते विधानसभा चुनाव में जयललिता ने 234 सीटों में से 130 से अधिक सीटों पर काबिज होकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई, और विपक्षी पार्टी 98 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही, लेकिन राष्ट्रीय पार्टियों का वाजूद दक्षिण के दुर्ग तमिलनाड़ू से बहुत पहले ही गायब हो चुका था। जिसको साधने का उचित समय अब राष्ट्रीय पार्टियों के सामने पांव पसार कर देख रहा है, क्यांेकि तमिलनाड़ू की जनता जिस आस्था और विष्वास के साथ अम्मा के तरफ निहारती थी,, उस अंदाज का व्यक्तित्व एआईएडीएमके के किसी भी राजनीतिक चेहरें में नही मालूमात हो रही है। भाजपा जिस अंदाजे -बयां में सियासीलीला को खेल रही है, उससे ऐसा अंदाजा लगाया जा सकता है, कि भाजपा असम की भांति दक्षिण के दुर्ग को भेदने की और नई रणनीति चल सकती है। कांग्रेस की बात की जाए, तो उसका वाजूद राष्ट्रीय स्तर पर जब नेतृत्व के आभाव में दरक रहा है, फिर क्षेत्रीय राजनीति में उससे कोई कारनामा करना टेड़ी खीर साबित होने वाली है। कांगे्रस रणनीतियों को बनाने की कोषिष तो कर रही है, लेकिन लोगों का विष्वास कही न कही उनकी कार्यकुषलता और नीतियों से भागती नजर आ रही है। वह बात चाहे राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में हो, या क्षेत्रीय राजनीति में नेतृत्व का अभाव साफ नजर आता है, फिर दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस को अपना वाजूद निर्मित करने में काफी समय और रणनीति पर बल देना होगा। डीएमके के एम करूणानिधि भी 92 साल के हो चुके है, फिर दक्षिण के दुर्ग को साधाने के लिए नई रणनीति और चेहरे की आवष्यकता महसूस की जा रही है, जिसके लिए द्रविड़ जाति को साधने वाले इन सियासी क्षेत्रीय दलों के पास चेहरे की कमी और लोकप्रियता स्पष्ट देखी जा सकती है।
मोदी सरकार जिस हिसाब से गरीबों और आम जनता में अपनी पैठ मजबूत बनाने की दिषा में राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ रही है, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है, कि विगत कुछ समय में भाजपा दक्षिण के दुर्ग यानी तमिलनाड़ू की राजनीति में अपना वाजूद बनाते दिख सकती है।
महेश तिवारी
स्वतंत्र टिप्पणीकार

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